Monday 11 May 2015

मूवी रिव्यू: फिल्म ‘पीकू’ - मोशन से इमोशन तक का अद्भुत सफर |

शूजीत सरकार एक ऐसे वाहिद लेखक निर्देशक है जिनकी हर फिल्म का कन्टैटं और प्रस्तुति इतने कमाल की होती है कि दर्शक वाह वाह किये बिना नहीं रहता।चाहे वो विकी डोनर हो या फिर मद्रास कैफे। इस बार फिल्म ‘पीकू’में तो उन्होंने फन, मोशन और इमोशन को इस तरह पेश किया है कि दर्शक बाप बेटी के रिश्ते में होने वाली रोजमर्रा की आम बातों को इतने दिलचस्प और अविस्मरीणय तरीके को एक फिल्म के रूप में देखते हुए विस्मित हुये बिना नहीं रहता  फिल्म की लेखिका जूही चतुर्वेदी की लेखन प्रतिभा इस फिल्म से प्रभावशाली तरीके से सामने आती है|

भास्कर बनर्जी यानि अमिताभ बनर्जी एक सत्तर वर्शीय ऐसे बुर्जुग हैं जो किसी भी बीमारी को लेकर हमेशा बहम की हद तक सर्तक रहते हैं । उन्हें बेशक पेट की हल्की सी बीमारी है। दरअसल उन्हें सही तरीके से मोशन नही हो पाता । उनकी बेटी पीकू यानि दीपिका पादुकोन अपने पिता को बहुत प्यार करती है। लेकिन वो उसकी शादी के खिलाफ है क्योंकि उसका मानना है कि शादी के बाद लड़की टेलेंट चूल्हे चैंके तक रह जाता है। वे हमेशा अपने पेट की बीमारी को लेकर उसे इमोशनली ब्लैकमेल करते रहते हैं। भास्कर बात की खाल निकालने में माहिर है उनमें किसी भी बात पर बहस करने की असाधारण क्षमता है। इसीलिये उनके घर पर कोई नौकरानी तक काम पर नहीं टिक पाती। दिल्ली के चितरजंन पाके नरमक सीन पर ये छोटा सा परिवार रहता है। वहीं एक आफिस में पीकू काम करती है। लेकिन पिता के रवैये के कारण वो भी हर वक्त चिड़चिड़ी रहती है ।

इरफान खान का प्राइवेट टेक्सी सप्लाई का बिजनिस है । पीकू अपनी कार चलाना पसंद नहीं करती इसीलिये उसके लिये आफिस आने जाने के लिये इरफान के यंहा से टेक्सी सप्लाई होती है लेकिन पीकू के चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से इरफान का हर ड्राइवर त्रस्त है । एक बार अमिताभ और दीपिका का अपने होम टाउन कोलकाता जाने का प्रौग्राम बनता है तथा अमिताभ की जिद पर कोलकाता बाई रोड़ जाने के लिये इरफान की टेक्सी बुक की जाती है लेकिन इस बार उनके साथ कोई भी ड्राइवर चलने के लिये तैयार नहीं । मजबूरन खुद इरफान को उनके साथ कोलकाता ड्राइवर बनकर जाना पड़ता हैं इसके बाद कोलकाता तक रास्ते में ऐसी ऐसी घटनायें पेश आती है जो दर्शक को अंत तक गुदगुदाती रहती हैं ।
निर्देशन

एक बंगाली परिवार के बुर्जुग और उसकी बेटी के बीच असीम प्रेम को लेकर शुजीत सरकार ने ऐसी कहानी को दर्शाया है जो हर किसी को अपने माता पिता के प्रति आदर भाव का शिद्दत से एहसास करवाती है। फिल्म का स्क्रीनप्ले और डायलाॅग इतने प्रभावी है कि दर्शक शुरू से अंत तक उन्हीं के साथ हंसता मुस्कराता रहता है। लेकिन अंत में यही हंसी इस कदर इमोशन में बदल जाती है कि आंखों नम हुये बिना नहीं रहती। सबसे बड़ी बात कि ऐसी कहानी जिसमें शुरू से अंत तक पेट की खराबी और मोशन को लेकर ही बातें होती रहती है। इसे शुजीत सरकार जैसे ब्रिलियंट डायरेक्टर ही दिलचस्प बना सकते हैं। ये उन्हीें के निर्देशन का कमाल है कि उन्होंने अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोन और इरफान खान की प्रतिभा का बहुत माहिराना तरीके से इस्तेमाल किया है। इसीलिये फिल्म का असर एक अरसे तक दिमाग में छाया रहता है।
अभिनय 
  

फिल्म में अमिताभ बच्चन है जिन्हें अगर अभिनय का स्कूल कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अगर एक मिनिट आंखें बंद कर मनन किया जाये कि फिल्म में भास्कर बनर्जी का रोल और कौन कर सकता है तो घूम फिर कर उन्हीें के पास लौटना पड़ता है । उन्होंने एक सत्तर वर्शीय रिच लेकिन एक हद तक सनकी बुर्जुग को किरदार के भीतर घुसकर जीया है। इसीलिये ये भूमिका उन्हें एक पायदान और ऊपर खड़ा कर देती है। दीपिका पादुकोन ने पीकू की भूमिका से साबित कर दिखाया है कि अब वो हर तरह की भूमिकायें निभाने वाली एक समर्थ अभिनेत्री बन चुकी है। इरफान के बारे में कुछ भी कहना उनकी तारीफ में कहे गये शब्दों को दौहराना होगा। वे इतने माहिर अभिनेता है जो फौरन अपनी भूमिका से इस तरह जुड़ जाते हैं कि इरफान से किरदार बनने में उन्हें जरा भी वक्त नहीं लगता। यही उन्होंने इस फिल्म में भी किया है। इनके अलावा मौशमी चटर्जी ने पीकू की मोसी के रोल में -जो एक ऐसी बिंदास अधेड़ महिला है जो अभी तक चार शादियां कर चुकी हैं - फिल्मों में अपनी वापसी को अपने शानदार अभिनय द्धारा साकार कर दिखाया है। इनके अलावा इरफान की मां, बहन और पीके के नोकर जैसे किरदार भी अंत तक याद रह जाते हैं ।
संगीत

फिल्म में कुल छह गीत हैं।जिन्हें एक नये म्युजिक कंपोजर अनुपम राय ने कंपोज किये है। सभी गीत, गीत नहीं बल्कि कहानी का ऐसा हिस्सा है जो कहानी बयान भी करते हैं और उसे आगे भी बढ़ाते हैं । फिल्म क्यों देखें अगर आप रीयलस्टिक सिनेमा पसंद करते हैं या नहीं भी करते तो भी आपको दोस्तों के साथ या परिवार के साथ एक अद्भुत फिल्म देखने का मौंका नहीं गवाना चाहिये ।

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