Thursday 21 May 2015

निजी जिंदगी में मैं भी बहुत इमोशनल इंसान हूं….दीपिका पादुकोण

 

वर्ष 2013 दीपिका का था. लेकिन 2014 में ‘हैप्पी न्यू ईयर’को छोड़ दें,तो दीपिका पादुकोण कुछ खास कमाल नहीं कर पायी.पर उन्हें उम्मीद है कि 2015 उनका होगा.इस साल ‘पीकू’,‘बाजीराव मस्तानी’ और‘तमाशा’जैसी उनकी फिल्में रिलीज होने वाली हैं.फिल्म‘पीकू’में उनके साथ अमिताभ बच्चन और इरफान खान हैं.तो ‘तमाशा’में रणबीर कपूर हैं.जबकि संजय लीला भंसाली निर्देशित फिल्म‘‘बाजीराव मस्तानी’’में रणवीर सिंह हैं.2015 की शुरूआत में दीपिका पादुकोण ने कुछ समय के लिए डिप्रेशन में जाने की बात उजागर कर हंगामा मचाया.तो दूसरी तरफ वह रणवीर सिंह के साथ अपने संबंधों को लेकर भी चर्चा में हैं.हाल ही में रणवीर सिंह अस्पताल में भर्ती थे,उस वक्त अस्पताल में भी रणवीर सिंह की देखभाल करने की बातें सामने आयीं.

अपने अब तक के अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

मेरी यात्रा काफी फलदायक रही.मेरे कैरियर की शुरूआत काफी फैंटास्टिक हुई थी.मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि किसी भी गैर फिल्मी परिवार से आने वाली नई लड़की को इस तरह का ब्रेक मिला हो.उसके बाद मेरी कुछ फिल्में बाक्स आफिस पर ठीक ठाक नहीं चली.मैंने उसका उपयोग अपनी गलतियों का समझकर उसे सुधारने में किया.कहाॅं मैं अपने आपको इम्प्रूव कर सकती हूॅं,वह सब किया.मेरे कैरियर का वह‘लो फेज’मुझे खुद को बेहतर बनाने के काम आया.मैंने कभी भी असफलता का गम नही मनाया.मैंने कभी यह नहीं कहा कि यह सब मेरे साथ क्यों हो रहा है.मैंने पेंशस रखते हुए उस‘फेज’से उभरकर खुद को सफल बनाने का प्रयास किया.तो मेरे कैरियर में भी उतार चढ़ाव रहा.‘काकटेल’ से मेरे कैरियर को नया जीवन मिला.पर मैंने कभी हार नहीं मानी.मैं कभी निराश नहीं हुई.मैने अपनी गलती को पहचाना और उसे सुधारा.हर इंसान अपनी गलतियों, उतार चढ़ाव से सीखता है |


कभी ऐसा हुआ होगा,जब आपको रिजेक्ट किया गया हो?

मेरा मानना है कि जो कुछ होता है,अच्छे के लिए ही होता है.एक दो फिल्मों ऐसी रही हैं,जिनमें मैं काम करना चाहती थी,लेकिन उन फिल्मों में मुझे नहीं लिया गया.तब कुछ अजीब सा लगा था.लेकिन जब वह फिल्म रिलीज हुई,तो उसका परिणाम व उस फिल्म ेेको देखकर मैने सोचा कि अच्छा हुआ कि मुझे इस फिल्म में नहीं लिया गया था.अंततः सब कुछ अच्छे के लिए ही होता है।

फिल्म‘‘पीकू’’के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

यह फिल्म एक पिता और उनकी बेटी के रिश्तों की दास्तान हैं.जिसमें मैंने पीकू का किरदार निभाया है.पीकू के पिता के किरदार में अमिताभ बच्चन हैं.दिल्ली निवासी पीकू पेशे से आर्कीटेक्ट है.दिल्ली में रहती है.वह सशक्त मगर एक साधारण लड़की है,जो कि अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीना पसंद करती है.वह अपने पारिवारिक मूल्यों कोे भी लेकर चलती है.उसे अपने पिता से बहुत लगाव है.उसके पिता रिटायर होने के बाद इस बात का अहसास करते हैं कि उन्हें कई बिमारियों ने घेर रखा है. तब वह अपने पिता की सेवा भी करती है और उनकी बिमारियों को भी समझने की कोशिश करती है।


तो क्या पीकू के किरदार को निभाने के लिए कोई खास तैयारी करनी पड़ी?

उपरी सतह पर तो यह बहुत ही ज्यादा इमोशनल किरदार है.इमोशंस के लिए तैयारी करने की जरुरत नहीं पड़ी.निजी जिंदगी में मैं भी बहुत इमोशनल इंसान हूं.मगर इस किरदार में इमोशन के साथ साथ काफी गहरायी व संजीदगी भी है. इसलिए इस किरदार के अनुरूप खुद को तैयार करना पड़ा.मैंने इस किरदार को निभाने के लिए तमाम मेडिकल की किताबें भी पढ़ी.कुछ बिमारियो और उन बिमारी से जुड़ी सायकोलाॅजी को भी समझने की कोशिश की.फिल्म‘‘पीकू’’मेरे लिए हमेशा खास रहेगी.क्योंकि यह फिल्म मेरे कैरियर की पहली ऐसी फिल्म है,जिसने मुझे एक बेहतरीन ड्राइवर बना दिया.मैं बहुत कम ड्राइविंग करती हूं.पर इस फिल्म के लिए मैंने हाईवे पर भी कार चलायी है।

फिल्म‘‘पीकू’तो पिता और बेटी के रिष्तों की फिल्म है.क्या कभी आपने अपने परिवार वालों से कोई बात छिपाई, जिसके लिए बाद में आपने उनसे माफी माॅंगी हो?

यदि हम सोचते हैं कि हम अपने माता पिता से कुछ भी छिपा लेते हैं,तो हम गलत सोचते हैं.हम सभी के माता पिता को हमारी हर सांस के बारे में पता होता हैं.मैं तो अपने माता पिता से दूर मुंबई में ही ज्यादा रहती हूं,पर उन्हें पता रहता है कि मेरी जिंदगी में क्या चल रहा है. आपसी विश्वास,प्यार और आदर ही किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाता है.मैं उनके इस फैसले का सम्मान करती हूं कि उन्होंने मुझे घर से इतनी दूर अकेले रहने की इजाजत दी है.मेरी कोषिष रहती है कि मैं अपने किसी भी आचरण से उनके विश्वास को ठेस न पहुचने दूं. यह सिर्फ आपसी विश्वास पर ही हो सकता है।


आपका अपने माता पिता के साथ किस तरह का रिश्ता है?

एक दोस्त जैसा.मेरी राय में हर इंसान को किसी भी रिष्ते को ग्रांटेड मानकर नहीं चलना चाहिए.माता पिता को लेकर मन में एक डर का बना रहना जरुरी है.मगर इतना डर नही होना चाहिए कि आपको अपने माता पिता से कुछ भी छिपाने की जरुरत पड़े.मैंने भी एक सीमा रेखा बना रखी है,जिसे मैं कभी पार नहीं करती.मेरा माता व पिता दोनों के साथ एक ही जैसा रिश्ता है.मेरे पिताजी स्पोर्ट्समैन होने के साथ साथ काफी अनुशासित इंसान हैं।

संजय लीला भंसाली के साथ दूसरी फिल्म‘‘बाजीराव मस्तानी’’ करने के क्या अनुभव हैं?

मुझे मजा आ रहा है.फिल्म ‘रामलीला..’के दौरान संजय लीला भंसाली से मेरी अच्छी ट्यनिंग हो गयी थी.हम दोनो एक दूसरे को काफी अच्छे ढंग से समझते हैं.इसलिए इस बार उनके साथ काम करना ज्यादा आनंद दायक है.मैंने जिस टीम के साथ ‘‘गोलियों की रासलीला….रामलीला’’की थी,उसी टीम के साथ मैं फिल्म‘बाजीराव मस्तानी’कर रही हूं.इस फिल्म में मेरे अलावा रणवीर सिंह और प्रियंका चोपड़ा भी हैं.पर मेरा जो किरदार है,वह कुछ ज्यादा ही सशक्त है.हमने इस फिल्म के लिए राजस्थान जाकर शूटिंग की।


सुना है कि इस फिल्म में एक गाना आप व प्रियंका चोपड़ा दोेनो पर फिल्माया जाना था.पर अंततः आपने यह गाना प्रियंका से छीन लिया.?

ऐसा कुछ नहीं है,जैसा आप समझ रही हैं.यह सच है कि पहले इस फिल्म का एक गाना मुझ पर और प्रियंका चोपड़ा दोनों पर फिल्माया जाना था.लेकिन फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली को अहसास हुआ कि यदि यह गाना सिर्फ मुझ पर फिल्माया जाए, तो ज्यादा अच्छा होगा.इस गाने के निर्देशक पं.बिरजू महाराज को भी यही बात ठीक लगी.उसके बाद पं.बिरजू महाराज ने मुझे कत्थक डांस के साथ साथ इस गाने के लिए आवश्यक ट्रेनिंग दी.यह अवधी व बृजवासी ठुमरी गीत है,जिसके बोल हैं -‘‘बलमा रे चुनरीयां मैको लाल…’’इस गाने में मैंने लाल रंग की पोशाक पहनी हैं.गाने में मुझे चुनरी ओढ़नी पड़ी है.घूंघट काढ़ना पड़ा है.पंडित बिरजू महाराज ने जिस बेहतरीन तरीके से मुझसे काम करवाया है,वह तो मैं सोच भी नही सकती थी।

फिल्म‘‘बाजीराव मस्तानी’’के किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

मैंने इस फिल्म में मस्तानी का किरदार निभाया है,जो कि डांसर है. इससे अधिक अभी मैं इस फिल्म को लेकर कुछ कहना नहीं चाहती।

फिल्म‘‘तमाशा’’को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

इम्तियाज अली निर्देशित फिल्म ‘‘तमाशा’’ पूरी तरह से रोमांटिक ड्रामा वाली फिल्म है.जिसमें मैं तारा माहेश्वरी और रणबीर कपूर, वेद साहनी के किरदार को निभा रहे हैं. यह उन लोगो की कहानी है,जो कि सामाजिक मूल्यों व सामाजिक माॅंग के अनुरूप जिंदगी जीते हुए खुद को खो बैठते हैं.इस फिल्म की शूटिंग फ्रांस में की गयी है.इससे अधिक अभी से इस फिल्म को लेकर बताना ठीक नहीं होगा।

इन दिनों कई अभिनेत्रियाॅं फिल्म निर्माता बनकर नए आकाश को छूने की कोशिश कर रही है.आपने कुछ सोचा है?

कई लोग मुझसे कहते हैं कि मैं एक बेहतरीन निर्माता साबित हो सकती हूं मगर मुझे लगता है कि मैं गणित व बिजनेस में बहुत कमजोर हूं। मुझे नहीं लगता कि मैं सफल बिजनेस ओमन बन सकती हूं. मुझे निर्देशक के रूप में काम करना पसंद है.एक बार फिल्म ‘पीकू’के सेट पर मेरे सीन की शूटिंग समय से पहले ही खत्म हो गयी.वहां काफी भीड़ मौजूद थी.तब मैंने सहायक निर्देशक के रूप में काम करते हुए वहां मौजूद लोगों को संभालने का काम किया था।

Source: Click Here

Monday 18 May 2015

Checkout Mayapuri for Hindi Film Magazine

Forty year old film weekly, Mayapuri has a national presence and a readership abroad. It is the pulse of fans in India as well as across the world. The magazine brings you interviews, gossip, a sneak peak at the secret lives of the stars, critics comments and all it takes to make a block buster bollywood film magazine. It is not only a favourite with the readers but with the industry luminaries as well. Superstars, directors , producers and music directors all read the magazine with interest. Films may win or lose but mayapuri has been a winner for over 40 years. It not only covers Bollywood but TV serials as well. It has a grip on the world of celluloid. It is a foremost Bollywood Film Magazine of its times.

It is the oldest and most widely circulated weekly in India with an avid  circulation  of 3,40,000 readers a week. It has gained the distinction of being the  most popular entertainment  magazine in India. The 1970 and 1980 editions are considered vintage pieces and are now a collectors item.


The Hindi film magazine is full of attractive glossy pictures that attract the reader. It feeds the curiosity of millions of star struck fans for whom the celluloid presence of the hero’s is not enough. It provides a sneak peak into their most secret lives and views. The lives of the actors and their successes provides inspiration to millions of readers and leaves them enthralled.

More recently, the Mayapuri film magazine has made itself digitally available to star hungry readership. This shas a definite edge over the printed weekly as it provides live intervies, video clips and live profiles of the actors.


It also makes it possible for Mayapuri to immediately disseminate  breaking news about Bollywood to its readers. Thus brawls and catfights within the industry are reported with the usual Bollywood Mirch masala and make interesting reading.

Mayapuri also covers sports heros and TV serials faithfully. Its recent covergae of Salman Khans hit and run trial case has been riveting. Deepika Padukone's depression and controversial new video has been brought to the readers with sensitivity.

Heres to many decades ahead of Mayapuri star gazing! The Mayapuri Film magazine  is the voice of Bollywood.

Friday 15 May 2015

मूवी रिव्यू: फिल्म ‘बांबे वेलवेट’ छटे दशक के बॉम्बे का सजीव चित्रण |


अनुराग कश्यप सरल से कथानक को जटिल बनाने में माहिर है । उनकी हालिया फिल्म ‘ बांबे वेलवेट’ मुबंई की छटे दशक पर आधारित है जब आजादी के बाद मुबंई नई करवटे ले रहा था । उस दौरान नेता,बिल्डर, बिजनिसमैन तथा अंडरवर्ल्ड मुबंई को अपने मुताबिक ढालने और उसके द्वारा अकूत पैसा कमाने की साजिश में लगे हुए थे और उनका षिकार थे बंद होती मिलों के मिल मजदूर तथा महत्वपूर्ण स्थानों की जमीन ।

कहानी
आजादी के बाद बलराज यानि रणबीर कपूर अपनी मुंहू बोली मां के साथ तथा दसीका हम उम्र चिमन पाकिस्तान के मुल्तान और सियालकोट से बांबे आते हैं । बलराज की मां बाद में वेश्वावृति करने लगती है । बलराज और चिमन बांबे में कुछ बड़ा करने वाले है । एक दिन बलराज की मां उसका ढेर सारा सोना लेकर भाग जाती है । उसी दौरान उन्हें कैजाद खंबाटा यानि करण जोहर नामक एक बिजनिसमैन मिलता है उसे बलराज में कुछ करने की तड़प दिखाई देती हैं इसलिये उसे वा अपने काम का बंदा लगता है लिहाजा वो बलराज को बड़ा बनाने के सपने दिखाता है। लेकिन बलराज कैजाद से सौदा करता है कि अपने इस्तेमाल के बदले उसे हिस्सा चाहिये । कैजाद पहले उसे अपने क्लब बांबे वेलवेट का मैनेजर बनाकर उसकी एक हैसियत बनाता है । बाद में उसे नया नाम जाॅनी बलराज देकर उस के जरिये नेता और कई महत्वपूर्ण लोगों को या तो मरवा देता है या फिर उन्हें ब्लैकमेल करने का इंतजाम करवाता है | इन्ही में होम मिनिस्टर के कैजाद की पत्नि के साथ कुछ फोटोग्राफ हैं ।

अनुष्का शर्मा एक गोवानी है जो बचपन में ही एक गोवानी के हाथ लग गई थी जिसका इस्तेमाल उसने उसकी जवानी तक किया लेकिन एक दिन वो गोवा में उसके चुंगल से निकल भाग कर बांबे आ जाती है और पारसी संपादक मनीश चैधरी के लिये काम करना शुरू कर देती है । मनीष उसे बलराज को फंसाकर मंत्री के नगेटिव लाने के लिये बांबे वेलवेट क्लब भेजता है । लेकिन अनुश्का धीरे धीरे बलराज से प्यार करने लगती है ।एक दिन जब बलराज को पता चलता है कि कैजाद अपने नेताओं, बिजनिसमैनों मिल मालिकों के साथ बांबे की कीमती जमीनों को सस्ते दोमों में खरीदने का प्लान बना रहा है तो बलराज केजाद से अपने हिस्से की बात करता है क्योंकि उसका सपना है कि उसकी भी जाॅनी बलराज नामक टावर हो ।यहां केजाद का असली चेहरा सामने आता हे तो बलराज बागी बन अपने और अनुष्का के मारे जाने से पहले केजाद का सफाया करने में कामयाब हो जाता है ।

फिल्म
बांबे वेलवेट उपन्यास मुबंई फेबल्स तथा एक अंग्रेजी फिल्म से प्रेरित है । कहानी 1949 से षुरू हो 1960 के दशक की हैं जब मुबंई महानगर बनने के दौर से गुजर रही थी इसका फायदा उठाते हुये बंद मिलों के मलिक मिलों की जमीनों को मोटे दोमों में बेचना चाहते थे । यहां बिल्डर, बिजनिसमैन, अखबार का एडिटर और राजनीति के बडे नेता भी मोटी कमाई करने की फिराक में थे । उस दौर को फिल्म में प्रभ्ससवशाली ढंग से दर्षाया गया है ।

अभिनय
रणबीर कपूर कितना बड़ा अभिनेता है, इससे पहले भी वो अपनी फिल्मों में बेहतर तरीके से बता चुका है।लेकिन यहां उसने पहली बार उसने एक जिद्दी, उग्र, गुस्से वाले तथा जुनूनी गैंग्सटर की भूमिका में पूरी तरह उतर कर दिखाया है । अनुष्का ने साठ के दशक की सिंगर की भूमिका को लेकर अच्छी खासी मेहनत की है इस चक्कर में कहीं कहीं वो अपने आपको ओवर होन से नहीं बचा पाती। मनीष चैधरी, सिद्धार्थ बसू,के के मेनन, सत्यजीत मिश्रा,मुकेश छाबड़ा तथा विवान शाह आदि कलाकारों ने बढिया अभिव्यक्ति दीे हैं । एक सिंगर के गेस्ट रोल में रवीना टंडन भी दिखाई देती है । लेकिन फिल्म का सरप्राइज पैकेज है करण जोहर । उन्होंने पहली दफा एक नगेटिव भूमिका ऐसे अनुभवी अभिनेता की तरह निभाई है कि उन्हें देख कर धुंरधर अभिनेता शरमा जाये ।

फिल्म का लुक
सन साठ के बांबे को दिखाने के लिये डिजाइनर सोनल सांवत तथा कास्ट्यूम डिजाइनर निहारिका खान ने वेष भूशा और अन्य साधनों के द्वारा उस काल को जैसे जिंदा कर दिखाया है । उस दौर के बांबे के आदमी उनका लुक, सड़को, ट्राम तथा अन्य वाहन और इमारतों तक पर पूरा ध्यान दिया गया है ।खासकर रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा और करण जोहर इनका हेयर स्टाइल मूछें तथा पोशाक उसी दौर की है। लिहाजा ये तीनो पूरी तरह से उसी दौर के लगते हैं । इनके अलावा सहयोगी कलाकारों के लुक और वेशभूषा पर भी पूरा ध्यान दिया गया है ।


निर्देशन
अनुराग कश्यप का अपना एक अलग अंदाज है । ये दूसरी बात है कि उनके अंदाज में बनी फिल्में एक खास वर्ग की ही समझ में आती है आम दर्शक उनसे दूर ही रहता है । बेशक इस बार उन्होंने एक मंहगी फिल्म बनाई है और जो वे दिखाना चाहते थे वो सब कुछ दिखाया भी है लेकिन उसे इतना जटिल कर दिया है कि इस बार भी आम दर्शक इस फिल्म से दूर ही रहेगा।फिल्म की कास्टिंग अच्छी है । जंहा तक रणबीर कपूर की बात की जाये तो वो एक ऐसा अभिनेता है जो हर किरदार में ढल जाता है यहां भी अनुराग ने उससे बेहतरीन काम करवाया है लेकिन फाइट के दृश्यों में वो नकली लगता है । इसी तरह अनुष्का भी कभी कभी गाते हुए चेहरे से एक्टिंग करती भद्दी लगती है लेकिन अनुराग का सारा ध्यान उस दौर पर रहा इसलिये उसने इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान नही दिया । इसके अलावा उन्होंने इस फिल्म से करण जोहर के रूप में एक बेहतरीन अभिनेता बाॅलीवुड को दिया है । फिल्म कांट छांट के बाद भी ढ़ाई घंटे की है ।


म्युजिक
अमित त्रिवेदी ने बेशक उस दौर के संगीत के लिये मेहनत की है। लेकिन कई जगह सिंगर इतनी ओवर हो जाती है कि गाने उस दौर के गानों की मिमक्रि लगने लगते हैं ।

क्यों देखें
अगर आप उस दौर के बांबे को बनते बदलते देखना चाहते हैं या अनुराग कश्यप के अंदाज की फिल्में पंसद करते हैं तो ये फिल्म जरूर देख सकते हैं । लेकिन गर्ल फ्रेंड के साथ, परिवार के साथ नहीं ।

Source Visit Here

Wednesday 13 May 2015

Bollywood Mirch Masala Magazine In Hindi

Mayapuri has been giving us spicy, hot gossip for over 4 decades. It brings us the very latest Bollywood news and makes it come alive for the avid fans of tinseltown. This Bollywood Masala magazine is immensely popular and has a wide readership, especially in Northern India.
  • The latest edition of mayapuri online brings up these engaging Bollywood news clips.
  • Coverage of the film Piku and Amitabh and Deepika's unlimited fun.
  • The disagreement between Ekta Kapur and Sujoy Ghosh ( film director) over a japanese based film.
  • Fight between Deepika Padukone and Irfan Khan
  • Pakistani actress Saida Khan refuses to kiss  Kapil Sharma on screen
  • Priyanka Chopra in Bajiroa Mastani in traditional Marharashrtian outfit.
  • The latest about Rakhi Sawant
  • Anusha Sharma in Bombay Velvet.
  • Why well known heroines dont want to work with Imraan Hashmi
  • The latest on Vidya Balan

As you can probably guauge, Mayapuri has its finger squarely on the pulse of Bollywood. It brings you a slice of Bollywood life and its interviews and profiles are very incisive. It gives you the breaking Bollywood news of the industry and analysis it with comments from expert commentators.

One reason why Mayapuri is immensely popular is because it brings you news in Hindi 3which is the mother tongue of millions of Indians and is even spoken by the Indian community in the west. The readership finds it easy to connect with the hindi language.

Mayapuri is not merely devoured by the Bollywood fans but by the industry luminaries as well. Directors, actors, music professionals, producers, make up artists - all want to know what is being said about them. Aside from fans they make a large part of the readership.


Mayapuri not only covers Bollywood news but  relays the lives of sports stars and TV celebrities specially those like Virat Kohli who have liasons with Bollywood. They report cat fights, disagreements, affairs and break ups with veracity and verve. The ver changing face of Bollywood is faithfully recorded by Mayapuri.

Monday 11 May 2015

मूवी रिव्यू: फिल्म ‘पीकू’ - मोशन से इमोशन तक का अद्भुत सफर |

शूजीत सरकार एक ऐसे वाहिद लेखक निर्देशक है जिनकी हर फिल्म का कन्टैटं और प्रस्तुति इतने कमाल की होती है कि दर्शक वाह वाह किये बिना नहीं रहता।चाहे वो विकी डोनर हो या फिर मद्रास कैफे। इस बार फिल्म ‘पीकू’में तो उन्होंने फन, मोशन और इमोशन को इस तरह पेश किया है कि दर्शक बाप बेटी के रिश्ते में होने वाली रोजमर्रा की आम बातों को इतने दिलचस्प और अविस्मरीणय तरीके को एक फिल्म के रूप में देखते हुए विस्मित हुये बिना नहीं रहता  फिल्म की लेखिका जूही चतुर्वेदी की लेखन प्रतिभा इस फिल्म से प्रभावशाली तरीके से सामने आती है|

भास्कर बनर्जी यानि अमिताभ बनर्जी एक सत्तर वर्शीय ऐसे बुर्जुग हैं जो किसी भी बीमारी को लेकर हमेशा बहम की हद तक सर्तक रहते हैं । उन्हें बेशक पेट की हल्की सी बीमारी है। दरअसल उन्हें सही तरीके से मोशन नही हो पाता । उनकी बेटी पीकू यानि दीपिका पादुकोन अपने पिता को बहुत प्यार करती है। लेकिन वो उसकी शादी के खिलाफ है क्योंकि उसका मानना है कि शादी के बाद लड़की टेलेंट चूल्हे चैंके तक रह जाता है। वे हमेशा अपने पेट की बीमारी को लेकर उसे इमोशनली ब्लैकमेल करते रहते हैं। भास्कर बात की खाल निकालने में माहिर है उनमें किसी भी बात पर बहस करने की असाधारण क्षमता है। इसीलिये उनके घर पर कोई नौकरानी तक काम पर नहीं टिक पाती। दिल्ली के चितरजंन पाके नरमक सीन पर ये छोटा सा परिवार रहता है। वहीं एक आफिस में पीकू काम करती है। लेकिन पिता के रवैये के कारण वो भी हर वक्त चिड़चिड़ी रहती है ।

इरफान खान का प्राइवेट टेक्सी सप्लाई का बिजनिस है । पीकू अपनी कार चलाना पसंद नहीं करती इसीलिये उसके लिये आफिस आने जाने के लिये इरफान के यंहा से टेक्सी सप्लाई होती है लेकिन पीकू के चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से इरफान का हर ड्राइवर त्रस्त है । एक बार अमिताभ और दीपिका का अपने होम टाउन कोलकाता जाने का प्रौग्राम बनता है तथा अमिताभ की जिद पर कोलकाता बाई रोड़ जाने के लिये इरफान की टेक्सी बुक की जाती है लेकिन इस बार उनके साथ कोई भी ड्राइवर चलने के लिये तैयार नहीं । मजबूरन खुद इरफान को उनके साथ कोलकाता ड्राइवर बनकर जाना पड़ता हैं इसके बाद कोलकाता तक रास्ते में ऐसी ऐसी घटनायें पेश आती है जो दर्शक को अंत तक गुदगुदाती रहती हैं ।
निर्देशन

एक बंगाली परिवार के बुर्जुग और उसकी बेटी के बीच असीम प्रेम को लेकर शुजीत सरकार ने ऐसी कहानी को दर्शाया है जो हर किसी को अपने माता पिता के प्रति आदर भाव का शिद्दत से एहसास करवाती है। फिल्म का स्क्रीनप्ले और डायलाॅग इतने प्रभावी है कि दर्शक शुरू से अंत तक उन्हीं के साथ हंसता मुस्कराता रहता है। लेकिन अंत में यही हंसी इस कदर इमोशन में बदल जाती है कि आंखों नम हुये बिना नहीं रहती। सबसे बड़ी बात कि ऐसी कहानी जिसमें शुरू से अंत तक पेट की खराबी और मोशन को लेकर ही बातें होती रहती है। इसे शुजीत सरकार जैसे ब्रिलियंट डायरेक्टर ही दिलचस्प बना सकते हैं। ये उन्हीें के निर्देशन का कमाल है कि उन्होंने अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोन और इरफान खान की प्रतिभा का बहुत माहिराना तरीके से इस्तेमाल किया है। इसीलिये फिल्म का असर एक अरसे तक दिमाग में छाया रहता है।
अभिनय 
  

फिल्म में अमिताभ बच्चन है जिन्हें अगर अभिनय का स्कूल कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अगर एक मिनिट आंखें बंद कर मनन किया जाये कि फिल्म में भास्कर बनर्जी का रोल और कौन कर सकता है तो घूम फिर कर उन्हीें के पास लौटना पड़ता है । उन्होंने एक सत्तर वर्शीय रिच लेकिन एक हद तक सनकी बुर्जुग को किरदार के भीतर घुसकर जीया है। इसीलिये ये भूमिका उन्हें एक पायदान और ऊपर खड़ा कर देती है। दीपिका पादुकोन ने पीकू की भूमिका से साबित कर दिखाया है कि अब वो हर तरह की भूमिकायें निभाने वाली एक समर्थ अभिनेत्री बन चुकी है। इरफान के बारे में कुछ भी कहना उनकी तारीफ में कहे गये शब्दों को दौहराना होगा। वे इतने माहिर अभिनेता है जो फौरन अपनी भूमिका से इस तरह जुड़ जाते हैं कि इरफान से किरदार बनने में उन्हें जरा भी वक्त नहीं लगता। यही उन्होंने इस फिल्म में भी किया है। इनके अलावा मौशमी चटर्जी ने पीकू की मोसी के रोल में -जो एक ऐसी बिंदास अधेड़ महिला है जो अभी तक चार शादियां कर चुकी हैं - फिल्मों में अपनी वापसी को अपने शानदार अभिनय द्धारा साकार कर दिखाया है। इनके अलावा इरफान की मां, बहन और पीके के नोकर जैसे किरदार भी अंत तक याद रह जाते हैं ।
संगीत

फिल्म में कुल छह गीत हैं।जिन्हें एक नये म्युजिक कंपोजर अनुपम राय ने कंपोज किये है। सभी गीत, गीत नहीं बल्कि कहानी का ऐसा हिस्सा है जो कहानी बयान भी करते हैं और उसे आगे भी बढ़ाते हैं । फिल्म क्यों देखें अगर आप रीयलस्टिक सिनेमा पसंद करते हैं या नहीं भी करते तो भी आपको दोस्तों के साथ या परिवार के साथ एक अद्भुत फिल्म देखने का मौंका नहीं गवाना चाहिये ।

Source: Click Here

Friday 8 May 2015

ऋषि कपूर चाहते हैं अभिजीत और एजाज खान को हिंजड़ा बनाना

सलमान खान की चमचागिरी का प्रदर्शन करते हुए गायक अभिजीत ने ट्वीट किया कि कुत्ता रोड पर सोएगा, कुत्ते की मौत मरेगा, रोड्स गरीबों के बाप की नहीं है। मैं भी एक वर्ष बेघर था लेकिन कभी रोड पर नहीं सोया।


एजाज खान ने फेसबुक पर पोस्ट किया- भाड़ में जाए भारतीय कानून। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। गरीबों को घर दो। वे रोड के इतना नजदीक सोते हैं कि छोटी सी गलती भी भारी पड़ जाती है। मेरे दोस्त से बिना पिये ये हुआ गुजरात में। भाई के लिए प्रार्थना करो।

इन दोनों के इन कथनों से गुस्सा होकर ऋषि कपूर ने ट्वीट किया सलमान के ये चमचे तर्कहीन बातें कर सलमान को समर्थन दे रहे हैं। काश एक दिन का तानाशाह होता तो अभिजीत और एजाज को नपुंसक बना देता क्योंकि इन्होंने हमारे देश के कानून पर सवाल उठाए हैं। बाद में उन्होंने यह ट्वीट डिलीट कर दिया।

Source - Click Here
एजाज खान ने फेसबुक पर पोस्ट किया- भाड़ में जाए भारतीय कानून। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। गरीबों को घर दो। वे रोड के इतना नजदीक सोते हैं कि छोटी सी गलती भी भारी पड़ जाती है। मेरे दोस्त से बिना पिये ये हुआ गुजरात में। भाई के लिए प्रार्थना करो। - See more at: http://mayapurionline.com/salman-khan-hit-and-run-case-rishi-kapoor-want-to-abhijeet-and-ajaz-khan-impotent/#sthash.P9NZP5B8.dpuf
एजाज खान ने फेसबुक पर पोस्ट किया- भाड़ में जाए भारतीय कानून। इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। गरीबों को घर दो। वे रोड के इतना नजदीक सोते हैं कि छोटी सी गलती भी भारी पड़ जाती है। मेरे दोस्त से बिना पिये ये हुआ गुजरात में। भाई के लिए प्रार्थना करो। - See more at: http://mayapurionline.com/salman-khan-hit-and-run-case-rishi-kapoor-want-to-abhijeet-and-ajaz-khan-impotent/#sthash.P9NZP5B8.dpuf
सलमान खान की चमचागिरी का प्रदर्शन करते हुए गायक अभिजीत ने ट्वीट किया कि कुत्ता रोड पर सोएगा, कुत्ते की मौत मरेगा, रोड्स गरीबों के बाप की नहीं है। मैं भी एक वर्ष बेघर था लेकिन कभी रोड पर नहीं सोया। - See more at: http://mayapurionline.com/salman-khan-hit-and-run-case-rishi-kapoor-want-to-abhijeet-and-ajaz-khan-impotent/#sthash.P9NZP5B8.dpuf
ऋषि कपूर चाहते हैं अभिजीत और एजाज खान को हिंजड़ा बनाना - See more at: http://mayapurionline.com/salman-khan-hit-and-run-case-rishi-kapoor-want-to-abhijeet-and-ajaz-khan-impotent/#sthash.P9NZP5B8.dpuf